गरीब बच्चा और राहगीर | यह कहानी सोच बदल देगी | Garib bachhe ki kahani

गरीब बच्चा और राहगीर की कहानी 

दोस्तों जब भी इमानदारी की बात आती हैं तो हम हमेशा एक सज्जन एक जेंटलमैन जैसे लोगो की छवि को अपने मन में लाते है. पर सच तो यह हैं की, इमानदारी कभी भी ना ही उम्र की मोहताज होती हैं और ना ही सूरत की यह बात गरीब बच्चा और राहगीर की कहानी साबित करती हैं क्योकि , इमानदार बनने के लिए बस आपका मन और दिल साफ़ रहना चाहिए .

आज के इस गरीब बच्चा और राहगीर की कहानी  के कहानी में इसी बात को जानेंगे:-

कहानी का शीर्षक – गरीब बच्चा और राहगीर

नंगे पैर, चिथड़े कपड़े पहने हुए एक लड़के ने आगे बढ़कर एक राहगीर से कहा- ‘साहब! दो-चार डिब्बियां दियासलाई (माचिस) की खरीद लीजिए।’

राहगीर बोला ‘नहीं भाई, मुझे जरूरत नहीं है’

‘ले लीजिए, पसाच पैसे की ही तो एक डिब्बी है,’ कहकर लड़का उस सज्जन के मुंह की ओर देखने लगा। थोड़ी देर में वह फिर बोला, ‘अच्छा, एक ही डिब्बी ले लीजिए।’

किसी तरह उससे पीछा छुड़ाने के लिए राहगीर ने एक डिब्बी ले ली, पर जेब में जब देखा कि खुले पैसे नहीं हैं तो वापिस कर दी और कहा कि तुमसे कल जरूर खरीद लूंगा, क्योंकि मेरे पास खुले पैसे नहीं हैं। लड़का नम्रतापूर्वक बोला, ‘आज ही ले लीजिए, मैं पैसे खुल्ले करवा के ला देता हूं।”

बालक की बात मानकर उन्होंने एक डिब्बी लेकर उसे दस रुपए का नोट दे दिया और वहीं खड़े होकर उस लड़के की प्रतीक्षा करने लगे।

 

जब थोड़ी देर हो गई और लड़का नहीं लौटा, तब उन्होंने सोचा, शायद अब वह नहीं लौटेगा, अतः वह अपने घर चले गए।

जब शाम हो गई, तब नौकर ने खबर दी कि एक लड़का उनसे मिलने आया है। उन्होंने उत्सुकता से बालक को अंदर बुलाया। वह देखते ही समझ गए कि यह उस दियासलाई (माचिस) वाले लड़के का भाई है। उसके चेहरे की हड्डियां चमक रही थीं, पर उस स्थिति में भी उसके चेहरे पर चमक थी।

थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह लड़का बोला- ‘क्या आपने ही मेरे भाई से दियासलाई(माचिस) की डिब्बी खरीदी थी, साहब?” ‘हां, खरीदी तो थी।

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‘लीजिए, ये नौ रुपए पचास पैसे, वह स्वयं नहीं आ सका। वह वापस लौटते हुए एक मोटर गाड़ी से टकरा गया था, जिससे उसकी टोपी, माचिसें और पैसे न जाने कहां गुम हो गए। उसकी टांगों की हड्डियां टूट गई हैं, उसकी हालत खराब है। डॉक्टरों का कहना है कि वह बच नहीं सकेगा। उसने किसी तरह से ये पैसे आपको भेजे हैं। यह कहते ही बालक की आंखों में आंसू बहने लगे। उसको देखकर उस भद्र पुरुष का हृदय द्रवित हो गया और वह तुरंत उसके साथ घायल बालक को देखने चल दिए।’

आकर क्या देखते हैं कि वह निःसहाय बालक एक बूढ़े शराबी के घर में रहता है, वह घास के ढेर पर लेटा हुआ है। वह उन्हें देखकर ही पहचान गया और लेटे हुए बोला – ‘साहब, मैंने पैसे तो तुड़वा लिए थे, लेकिन लौटकर मैं आ ही रहा था कि कार से टकराकर गिर गया और मेरी दोनों टांगें टूट गईं।’ इतना कहकर वह दर्द से कराहते हुए अपने छोटे भाई से बोला ‘मेरी मौत तो सामने खड़ी है, पर अब तुम किसके भरोसे रहोगे?’ यह कहते हुए वह रोने लगा और उसने छोटे भाई को गले से चिपका लिया। दोनों बालकों की आंखों में आंसू बह रहे थे।

उस सज्जन ने उस दुर्घटनाग्रस्त बालक का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा ‘बेटे, तुम चिंता न करो, मैं तुम्हारे भाई की – देखभाल करूंगा।’ बालक ने अपने शरीर की सारी शक्ति बटोरकर

उनकी ओर प्रार्थना की दृष्टि से देखा। उसकी आंखों से कृतज्ञता टपक रही थी। उसका दिल कुछ कहना चाहता था, पर जुबान साथ न दे सकी और उसी समय उसकी आंखें मुंद गईं और उसने संसार से विदा ले ली।

 

कहानी से शिक्षा:- 

इस उदाहरण में ईश्वर ने उस छोटे से घायल बालक को जीवन के ऊंचे सिद्धांत सिखा दिए थे। वह ईमानदारी, सच्चाई, सहृदयता और महानता के मूल्य को अच्छी तरह जानता था। इन्हीं महान गुणों से मनुष्य देवता कहलाता है। ऐसे चरित्र के धनी लोग ही इहलोक तथा परलोक में पूजे जाते हैं।

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