सुख को बाहर नहीं, भीतर खोजिए | internal happiness in hidni

सुख को बाहर नहीं, भीतर खोजिए (Find Out the Pleasure with in, Not with Out)

सुख और खुशी हमारे लाइफ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और जिस तरह हमारे लाइफ में दुःख जिस तरह से आता जाता हैं वैसे ही हमारे जीवन में सुख भी आता जाता हैं. पर कई बार हम इस सुख को बहार तलाशने निकल जाते हैं बजाय अपने अन्दर ढूँढना छोड़ कर. तो चलिए जानते हैं इन्ही कुछ बातों को जिसे जानने के बाद आप सुख और खुशी को बहार नहीं अपने अपने अन्दर तलाशेंगे.

1. सुख को बाहर ढूँढना दुर्भाग्य हैं (Finding happiness out is misfortune)

सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यही है कि व्यक्ति अपने सुखों की खोज अपने से बाहर करता है. पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहिन, पुत्र-पुत्री, मित्र-सहकर्मी और सामाजिक रिश्तों में सुख खोजता है. याद रखें, इनसे कभी सुख मिल ही नहीं सकता. जो बाहर है ही नहीं, उसे बाहर कैसे पाया जा सकता है. जिस वक्त व्यक्ति यह जान लेता है कि सुख तो स्वयम् में उतरने का नाम है, उसी वक्त क्रान्ति घट जाती है. बुद्धत्व की प्राप्ति हो जाती है. याद रखें, बाहर जो मिलता है, उसका नाम दुःख है और भीतर जो मिलता है, उसका नाम सुख है.

2. सुख का सम्बन्ध तो हमारी विचारधारा से है (Happiness is related to our ideology)

भौतिक और आर्थिक संसाधनों से नहीं. विचारधारा अन्दर से आती है, बाहरी साधनों से नहीं आती. ध्यान रहे, बाहरी सुख तो महज मिथ्या है. मिथ्या यानी जो है नहीं, केवल प्रतीत होता है. आन्तरिक सुख ही असली सुख है, जिसे अनुभव तो किया जा सकता है, किन्तु अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता. आन्तरिक सुख की प्राप्ति होने पर कोई भी आपको दुःखी नहीं कर सकता.

3. जो आपके पास नहीं हैं उसकी चाहत रखना बेकार हैं (It’s useless to want what you don’t have)

जो आपके पास नहीं है, उसकी अपेक्षा करना ही दुःख है. जैसे ही कोई वस्तु प्राप्त होती है, वह गौण होती चली जाती है. और फिर से नये वस्तु की अपेक्षा आरम्भ हो जाती है और यह दौड़ कभी खत्म होने वाली नहीं है, क्योंकि वस्तुओं की सूची कभी समाप्त होने वाली नहीं है. भौतिक संसाधनों से मिलने वाला सुख तो नितान्त ही अस्थायी एवम् अल्पावधि के लिए ही होता है. सुखों और दुःखों के क्रम में व्यक्ति प्रायः दुःखी ही रहता है. सुख-दुःख से ऊपर उठने पर आनन्द की उपलब्धि होती है, किन्तु आनन्द के लिए तो भीतर ही उतरना पड़ेगा. आनन्द ही स्थायी है और हर व्यक्ति आनन्द का अधिकारी है.

4. अपने ख़ुशी और दुःख का हिसाब रखना बंद करें  (Stop keeping track of your joys and sorrows)

बाहरी सुखों और दुःखों का हिसाब रखना व्यर्थ है. यह हिसाब ही व्यक्ति के दुःखों का मूल कारण है. क्योंकि हर जोड़-बाकी में दुःखों का पलड़ा भारी लगता है. सुखों को तो आदमी ठीक से आंक ही कहाँ पाता है. सुखों का सही-सही मूल्यांकन करने पर हमारे दुःखों की मात्रा बहुत कम रह जाती है. किन्तु यह तब ही संभव है, जब हम अपने भीतर उतर कर आकलन करें. सफलता का असली रहस्य भी यही है.

5. जिस काम से खुशी मिले वही असली सफलता हैं (The work that brings happiness is the real success)

यदि व्यक्ति को बिल्कुल ही खुला छोड़ दिया जाए, तब वह जल्दी ही जंगल राज से दुःखी हो जायेगा. और यदि उस पर अत्यधिक अनुशासन लाद दिया जाए, तब भी वह इच्छाओं के दमन के कारण दुःखी हो जायेगा. अर्थात् हर हालत में वह दुःखी ही रहेगा. इसलिए यदि आनन्दित रहना है तो भीतर उतरना होगा. अन्तर्यात्रा से ही आनन्द को उपलब्ध हुआ जा सकता है. जिस सफलता से सुख-दुःख नहीं, आनन्द की प्राप्ति हो, वही असली सफलता है.

इन्हें भी जरूर देखें:- 

Leave a Comment