कविता की ताकत, हिंदी कहानी
हिंदी कहानी-कभी-कभी ऐसा संयोग बनता है कि जो काम हाथ में लिया, थोड़े-से प्रयत्न से पूरा हो जाता है। यह हिंदी कहानी एक ऐसे लड़के की कहानी है जो निठल्ला था। और माँ पर बोझ बनकर रहता था। माँ ने उसे धन कमाकर लाने के लिए घर से बाहर कर दिया था। लड़के ने अपनी थोड़ी सूझ-बूझ से काम लिया, जिसके फलस्वरूप उसे अपार धन-सम्पत्ति मिल गई। कैसे? यह कहानी में पढ़ें।
बहुत पुरानी बात है। मदन नाम का एक लड़का अपनी माँ के साथ गाँव में रहता था। उसके पिता जी नहीं थे। माँ बेटा बहुत गरीब थे। उनके पास कमाई का कोई साधन नहीं था। फिर भी मदन दिनभर खेल-कूद में ही समय बिता देता था।
परेशान होकर एक दिन उसकी माँ ने कहा की अब मैं तुझे बिठाकर नहीं खिला सकती। जा, कुछ पैसे कमाकर ला।”
मदन घर से निकल पड़ा.
वह गहरी सोच में डूबा था कि कैसे पैसे कमाए ? अचानक उसे ढिंढोरा पीटने की आवाज़ सुनाई दी। “सुनो सुनो, सुनो! राजदरबार में कवि-सम्मेलन हो रहा है। सबसे अच्छी कविता सुनानेवाले को सौ अशर्फियाँ इनाम में मिलेंगी।” मदन चौकन्ना हो गया। ‘सौ अशर्फियाँ, यह तो बना बनाया मौका था।
वह सीधे राजमहल की ओर चल पड़ा। चलते-चलते वह सोच रहा था कि उसने कभी कविता तो रची न थी। क्या सुनाएगा वहाँ पहुँचकर ? उसने सोचा कि रास्ते में कुछ-न-कुछ सूझ ही जाएगा। थोड़ी दूर पहुँचा तो एक कुत्ता दिखाई दिया। कुत्ता पंजों से जमीन खोदने में लगा था। मदन ने अपनी कविता की एक पंक्ति सोच ली।
“खुदुर-खुदुर का खोदत है?” यह पंक्ति उसे इतनी पसंद आई कि उसे दोहराते हुए वह एक तालाब के पास पहुँचा। वहाँ एक भैंस पानी पी रही थी। मदन बोल पड़ा, “सुरुर सुरुर का पीवत है?” मुस्कुराते हुए वह आगे बढ़ा। इतने में उसे पेड़ की एक डाल पर चिड़िया बैठी दिखाई पड़ी पत्तियों के बीच से वह स निकालकर इधर-उधर झाँक रही थी। उसे देखते ही मदन के मुँह से निकल पड़ा, “ताक-झाँक का खोजत है?” तीनों पंक्तियों को रटते हुए यह चलता गया। रटते ते
उसे अपने आप एक और पंक्ति सूझ गई- “हम जानत है, का ढूँढ़त है!” अब तो सचमुच उसके मन में लड्डू फूटने लगे। कितने आराम से वह कविता रचता चला जा रहा था। तभी ‘सरे की आवाज सुनाई पड़ी। मदन ने चौंककर देखा कि एक साँप रेंगता जा रहा था। उसने आगे की पंक्तियाँ भी तैयार कर लीं, “सरक सरक कहँ भागत है ? जानत हो, हम देखत हैं? हमसे ना बच सकत है!” अब केवल एक पंक्ति बाकी रह गई थी। पर मदन निश्चित था कि वह पंक्ति भी चलते-चलते सूझ जाएगी।
राजधानी पहुँचा तो राजमहल का रास्ता ढूँढ़ने की समस्या खड़ी हुई। पास में खड़े एक आदमी से मदन ने पूछा, “भैया, आपको राजमहल का रास्ता मालूम है?” “”क्यों नहीं, उस आदमी ने उत्तर दिया। “मुझे नहीं तो और किसे मालूम होगा?” मदन ने सोचा कि अवश्य यह राजमहल का ही कोई कर्मचारी होगा। उसने पूछा, “आप कौन हैं, साहब?” मदन के दिमाग में एकाएक बिजली कौंधी ‘धन्नू शाह, भाई धन्नू शाह क्या बढ़िया उत्तर मिला, “धन्नू शाह।”
शब्द थे। उसने इन्हीं शब्दों से अपनी कविता की अंतिम पंक्ति बना डाली.वह खुशी-खुशी राजमहल पहुँचा अंदर घुसने से पहले उसने अपनी कविता – खुदुर खुदुर का खोदत है? सुरुर सुरुर का पीबत है? ताक-झाँक का खोजत है? हम जानत हैं, का ढूँढ़त है! सरक सरक कहँ भागत है? जानत हो, हम देखत हैं? हमसे ना बच सकत है! धन्नू शाह, भाई धन्नू शाह!
धन्नू शाह की तो साँस वहीं रुक गई। उसने सोचा, ‘अब कोई चारा नहीं। बस राजा साहब से दया की भीख माँग सकता हूँ। दौड़कर उसने राजा साहब के पैर पकड़ लिए और विनती करने लगा, “क्षमा कर दीजिए महाराज! अब मैं भूलकर भी ऐसा काम नहीं करूंगा। वैसे हमने कुछ लिया ही नहीं आपका खजाना सही-सलामत है।”
राजा साहब हक्के-बक्के रह गए। उन्होंने तुरंत सिपाहियों को बुलाकर छानबीन करवाई तो पता चला कि उनका खजाना लुटते-लुटते बचा था।
मदन को बुलवाया गया। राजा ने शाबाशी देकर कहा, “यह सब तुम्हारी कविता का कमाल है।” मदन को सोने-चाँदी से मालामाल कर दिया गया। वह खुशी-खुशी अपने गाँव लौट आया। अब उसके पास अपने और अपनी माँ के खाने-पीने के लिए पर्याप्त धन था।
कहानी से शिक्षा –
दोस्तों इस कहानी में मदन के किरदार से हम यह सिख सकते है की, किस तरह हम अपनी मंजिल की ओर कदम बढाते है तो वैसे ही हमे हमारे आगे का रास्ता हमें दिखने लगता है. इस कहानी में मदन बिना किसी तैयारी के तो घर से निकल गया था परन्तु उसके पास एक लक्ष्य था की उसे करना क्या है बीएस आपका गोल क्लियर होना चाहिए.