Maun Ka Mahattav (Hindi Story) : Mahatma Buddha

Motivational Story of Gautam Buddha: मौन का महत्त्व भगवान बुद्ध की प्रेरक कहानी

moun ka mahatva Gautam budha ki kahani
moun ka mahatva Gautam budha ki kahani

मौन का महत्त्व

आज एक और नयी प्रेरक और ज्ञानवर्धक भगवान बुद्ध की लेकर आये हैं दोस्तों गौतम बुद्ध (563 ईसा पूर्व–483 ईसा पूर्व) को महात्मा बुद्ध, भगवान बुद्ध, सिद्धार्थ व शाक्यमुनि नाम से भी जाना जाता है ।

आज के भगवान बुद्ध की प्रेरक कहानी के का टॉपिक – मौन का महत्त्व!
कहानी छोटी हैं मगर बहुत कुछ सिखा सकती हैं इसलिए आशा करते हाँ आप इसे पूरा जरुर पढेंगे तो चलिए अब शुरू करते हैं इस बेहतरीन कहानी को –

Stories of Lord Buddha (गौतम बुद्ध की कहानियां)

मौन का महत्त्व (कहानी) : महात्मा बुद्ध से संबंधित
Maun Ka Mahattav (Hindi Story) : Mahatma Buddha
एक व्यक्ति, कोई जिज्ञासु, एक दिन आया। उसका नाम मौलुंकपुत्र था, एक बड़ा ब्राह्मण विद्वान्‌; पाँच सौ शिष्यों के साथ बुद्ध के पास आया था। निश्चित ही उसके पास बहुत सारे प्रश्न थे। एक बड़े विद्वान्‌ के पास ढेर सारे प्रश्न होते ही हैं, समस्याएँ ही समस्याएँ। बुद्ध ने उसके चेहरे की तरफ देखा और कहा, ‘मौलुंकपुत्र, एक शर्त है । यदि तुम शर्त पूरी करो, केवल तभी मैं उत्तर दे सकता हूँ। मैं तुम्हारे सिर में भनभनाते प्रश्नों को देख सकता हूँ। एक वर्ष तक प्रतीक्षा करो। ध्यान करो, मौन रहो। जब तुम्हारे भीतर का शोरगुल समाप्त हो जाए, जब तुम्हारी भी की बातचीत रुक जाए, तब तुम कुछ भी पूछना और मैं उत्तर दूँगा। यह मैं वचन देता हूँ।”

मौलुंकपुत्र कुछ चिंतित हुआ-एक वर्ष, केवल मौन रहना, और तब यह व्यक्ति उत्तर देगा। और कौन जाने कि वे उत्तर सही भी हैं या नहीं ? तो हो सकता है एक वर्ष बिलकुल ही बेकार जाए। इसके उत्तर बिलकुल व्यर्थ भी हो सकते हैं। क्या करना चाहिए ? वह दुविधा में पड़ गया। वह थोड़ा झिझक भी रहा था। ऐसी शर्त मानने में; इसमें खतरा था। और तभी बुद्ध का एक दूसरा शिष्य, सारिपुत्र, जोर से हँसने लगा। वह वहीं पास में ही बैठा था–एकदम खिलखिलाकर हँसने लगा। मौलुंकपुत्र और भी परेशान हो गया; उसने कहा, “बात क्‍या है? तुम क्‍यों हँस रहे हो ?”

सारिपुत्र ने कहा, ‘“इनकी मत सुनना। ये बहुत धोखेबाज हैं । इन्होंने मुझे भी धोखा दिया । जब मैं आया था। तुम्हारे तो केवल पाँच सौ शिष्य हैं । पेरे पाँच हजार थे । मैं बड़ा ब्राह्मण था, देश भी में मेरी ख्याति थी। इन्होंने मुझे फुसला लिया; इन्होंने कहा, साल भर प्रतीक्षा करो। मौन रहो। ध्यान करो। और फिर पूछना और मैं उत्तर दूँगा। और साल भर बाद कोई प्रश्न ही नहीं बचा। तो मैंने कभी कुछ पूछा ही नहीं और इन्होंने कोई उत्तर दिया ही नहीं । यदि तुम पूछना चाहते हो तो अभी पूछ लो, मैं इसी चक्कर में पड़ गया। मुझे इसी तरह इन्होंने धोखा दिया।”

बुद्ध ने कहा, “मैं अपने बचन पर पक्का रहूँगा। यदि तुम पूछते हो, तो मैं उत्तर दूँगा। यदि तुम पूछो ही नहीं, तो मैं क्या कर सकता हूँ ?”

एक वर्ष बीता, मौलुंकपुत्र ध्यान में उतर गया। और- और मौन होता गया–भीतर की बातचीत समाप्त हो गई। भीतर का कोलाहल रुक गया। वह बिलकुल भूल गया कि कब एक वर्ष बीत गया। कौन फिक्र करता है ? जब प्रश्न ही न रहें, तो कौन उत्तरों की फिक्र करता है ? एक दिन अचानक बुद्ध ने पूछा, “यह वर्ष का अंतिम दिन है। इसी दिन तुम एक वर्ष पहले यहाँ आए थे। और मैंने तुम्हें वचन दिया था कि एक बर्ष बाद तुम जो पूछोगे, मैं उत्तर दूँगा, मैं उत्तर देने को तैयार हूँ। अब तुम प्रश्न पूछो ।”

मौलुंकपुत्र हँसने लगा, और उसने कहा, “आपने मुझे भी धोखा दिया। वह सारिपुत्र ठीक कहता था। अब कोई प्रश्न ही पूछने के लिए नहीं रहा। तो मैं क्या पूछूँ ? मेरे पास पूछने के लिए कुछ भी नहीं है।”

असल में यदि तुम सत्य नहीं हो तो समस्याएँ होती हैं । और प्रश्न होते हैं। वे तुम्हारे झूठ से पैदा होते हैं -तुम्हारे स्वप्न, तुम्हारी नींद से वे पैदा होते हैं। जब तुम सत्य, प्रामाणिक मौन समग्र होता हो–वे तिरोहित हो जाते हैं ।

मेरी समझ ऐसी है कि मन की एक अवस्था है, जहाँ केवल प्रश्न होते हैं; और मन की एक अवस्था है, जहाँ केवल उत्तर होते हैं। और वे कभी साथ- साथ नहीं होते । यदि तुम अभी भी पूछ रहे हो, तो तुम उत्तर नहीं ग्रहण कर सकते। मैं उत्तर दे सकता हूँ लेकिन तुम उसे ले नहीं सकते । यदि तुम्हारे भीतर प्रश्न उठने बंद हो गए हैं, तो मुझे उत्तर देने की कोई जरूरत नहीं है : तुम्हें उत्तर मिल जाता है। किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता है । मन की एक ऐसी अवस्था उपलब्ध करनी होती है जहाँ कोई प्रश्न नहीं उठते। मन की प्रश्नरहित अवस्था ही एकमात्र उत्तर है।

यही तो ध्यान की पूरी प्रक्रिया है : प्रश्नों को गिरा देना, भीतर चलती बातचीत को गिरा देना। जब भीतर की बातचीत रुक जाती है, तो ऐसा असीम मौन छा जाता है। उस मौन में हर चीज का उत्तर मिल जाता है । हर चीज सुलझ जाती है–शाब्दिक रूप से नहीं, अस्तित्वगत रूप में सुलझ जाती है। कहीं कोई समस्या नहीं रह जाती है।

गौतम बुद्ध की कहानियां (Stories of Lord Buddha)

भगवान बुद्ध की इस प्रेरक कहानि को मैंने बचपन में सुना था इसलिए आज इसे मैंने आप लोगो के साथ शेयर किया हैं | आशा करता हु की आपको यह कहानी पसंद आई होगी |

गौतम बुद्ध की कहानियां (buddh stories in hindi) की इस पोस्ट में महात्मा गौतम बुद्ध से सम्बन्धित 7 प्रेरक और शिक्षाप्रद कहानियां हैं, जिसका सार जिंदगी का बदल सकता हैं |

गौतम बुद्ध की कहानियां(gautam buddha stories in hindi) की इस पोस्ट में आपको अपने जीवन को किर्थार्थ करने वाली जानकारी मिली हो तो कमेंट सेक्शन में अपने विचार जरूर शेयर करना.

महात्मा बुद्ध और ज्ञानवर्धक कहानी के लिंक निचे दिए गए हैं आप इन्हें भी जरुर पढ़ें –

 

Leave a Comment