बुद्धि का बल हिन्दी कहानी –
बुद्धि का बल हिन्दी कहानी –
आपने भी कही न कही विश्व के महान दार्शनिकों में से एक ” सुकरात ” के बारे में आपने सुना होगा, एक बार सुकरात अपने 4 शिष्यों के साथ बैठ कर कुछ विषयो पर चर्चा कर रहे थे। तभी वहां अजीब से वस्त्र पहने एक ज्योतिषी आ पहुंचे।
वे ज्योतिष वहां बैठे सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए बोले, ” मैं ज्ञानी हूँ, मैं किसी का भी चेहरा देखकर उसका चरित्र बता सकता हूँ। बताओ तुममें से कौन मेरी इस विद्या और मेरे अपार ज्ञान को परखना चाहेगा?”
तभी सभी शिष्य सुकरात की तरफ देखने लगे।
तब महान दार्शनिक सुकरात ने उस ज्योतिषी से अपने बारे में बताने के लिए कहा।की मेरे बारे में कुछ बताइये .
अब वह ज्योतिषी उन्हें ध्यान से देखने लगा।
सुकरात बहुत बड़े ज्ञानी तो थे लेकिन वह देखने में बड़े सामान्य थे, बल्कि उन्हें कुरूप कहना गलय नही होगा !
ज्योतिषी उन्हें कुछ देर देखने के बाद बोला, ” तुम्हारे चेहरे की बनावट बताती है कि तुम सरकार के विरोधी हो, तुम्हारे अंदर विद्रोही वाले गुण है औरे विद्रोह करने की भावना बहुत ही प्रबल है। तुम्हारी आँखों के बीच पड़ी सिकुड़न तुम्हारे अधिक क्रोधी होने का प्रमाण देती है. ”
उस ज्योतिषी ने अभी इतना ही कहा था कि वहां बैठा पहला शिष्य अपने गुरु के बारे में ये बातें सुनकर क्रोध में आ गया और उस ज्योतिषी को तुरंत कहा कि ” तुम यहाँ से अभी चले जाओ ”
पर सुकरात ने उन्हें शांत करते हुए ज्योतिषी को अपनी बात पूरी करने को कहा।
ज्योतिषी बोला, ” तुम्हारा अजीब आकार का सिर और माथे से पता चलता है कि तुम एक बहुत ही लालची ज्योतिषी हो, और तुम्हारी ठुड्डी की बनावट बताती है की तुम एक सनकी व्यक्ति हो जो तुम्हारे सनकी होने के तरफ इशारा करती है।”
इतना सुनकर वह शिष्य और भी क्रोधित हो गए पर इसके विपरीत सुकरात प्रसन्न हो गए और उन्होंने ज्योतिषी को इनाम देकर विदा किया । वहां बैठे सभी शिष्य सुकरात के इस व्यवहार से आश्चर्य में पड़ गए और सुकरात से पूछा, ” की गुरूजी, आपने उस ज्योतिषी को इनाम क्यों दिया, जबकि उसने अभी आपके बारे में जो कुछ भी कहाँ वो सब बाते बिलकुल गलत है ?”
सुकरात बोले- ‘नहीं पुत्र, ज्योतिषी ने जो कुछ भी कहा वो सब सच है, उसके बताये सभी दोष मुझमें हैं, मुझे लालच है, मुझमे क्रोध है, और उसने जो कुछ भी कहा सब है, पर वह एक बहुत ज़रूरी बात बताना भूल गया, उसने सिर्फ बाहरी चीजें देखीं पर मेरे अंदर के विवेक को नही आंक पाया उस विवेक को पहचान नही पाया , जिसके बल पर मैं इन सारी बुराइयों को अपने काबू में किये रहता हूँ, बस वह यहीं चूक गया, वह मेरे बुद्धि के बल को नहीं समझ पाया !”, और सुकरात ने अपनी बात पूरी की।
कहानी से शिक्षा – दोस्तो, यह छोटी सी मगर प्रभावशाली कहानी बताती है कि बड़े से बड़े इंसान में भी कमियां हो सकती हैं, पर यदि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करें तो सुकरात की तरह ही उन कमियों से पार पा सकते हैं , उन्हें अपने काबू में कर सकते है जिससे हम एक ज्ञान वान व्यक्ति बन सकते है।
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