सिद्धार्थ और हंस (भगवान बुद्ध की कहानी)

 सिद्धार्थ और हंस भगवान बुद्ध की प्रेरक कहानी Gautam Buddha kahani in hindi

Gautam budha story kahani (3)
Gautam budha story kahani (3)

सिद्धार्थ और हंस

आज एक और नयी प्रेरक और ज्ञानवर्धक भगवान बुद्ध की लेकर आये हैं दोस्तों गौतम बुद्ध (563 ईसा पूर्व–483 ईसा पूर्व) को महात्मा बुद्ध, भगवान बुद्ध, सिद्धार्थ व शाक्यमुनि नाम से भी जाना जाता है ।

आज के भगवान बुद्ध की प्रेरक कहानी के का टॉपिक – सिद्धार्थ और हंस!
कहानी छोटी हैं मगर बहुत कुछ सिखा सकती हैं इसलिए आशा करते हाँ आप इसे पूरा जरुर पढेंगे तो चलिए अब शुरू करते हैं इस बेहतरीन कहानी को –

Stories of Lord Buddha (गौतम बुद्ध की कहानियां)

गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ नाम का अर्थ होता है – ‘वह जिसने अपने सभी इच्छाओं को पूरा किया।’ यह नाम उनके पिता राजा शुद्धोधन ने रखा था , क्योंकि जब बुद्ध का जन्म हुआ था तो सभी ज्योतिषियों और विद्वानों ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक बड़ा होकर एक महान सन्यासी बनेगा पंरतु बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन को यह बात अच्छी नहीं लगी। वे अपने पुत्र को एक महान राजा के रूप में देखना चाहते थे न कि एक सन्यासी। वे नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र फ़कीरों का जीवन जिए इसलिए सिद्धार्थ के रहने की व्यवस्था विलासिता से पूर्ण की गई । उन्हें तरह तरह की सुख सुविधाओं से रखा गया । दुख की अनुभूति तक न होने दी पंरतु एक सन्यासी के लक्षण तो बचपन में ही दिख जाता है। वे बचपन से ही शांत और सरल स्वभाव के थे। दया और करूणा तो उनके मन में कूट -कूट करकें भरी है थी । अक्सर सिद्धार्थ एकांत में जाकर ध्यानमग्न रहा करते थे।

एक दिन कि बात है, सिद्धार्थ अपने उपवन में एक शांत जगह इसी प्रकार ध्यानमग्न थे तभी एक घायल हंस उनके सामने आ गिरा जिससे उनका ध्यान भंग हो गया । जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो देखा कि सामने एक सफेद हंस तीर के वार से बुरी तरह घायल पड़ा तड़प रहा है। उसे देखते ही सिद्धार्थ का मन द्रवित हो उठा और उन्होंने उसे तुरंत उठा लिया । धीरे-धीरे वे हंस को सहलाने लगे और फिर पास के सरोवर में जाकर उसका घाव धोकर उसके शरीर से धीरे से तीर को निकाला। तीर निकालते ही वह दर्द से तड़प उठा तब सिद्धार्थ उसे धीरे से सहलाते है और उसके घाव पर पट्टी बांध देते हैं । उसी समय एक ओर से कुछ शोर होता है और उधर से उनका चचेरा भाई देवदत्त आता हुआ दिखाई दे।

सिद्धार्थ के हाथ में वह हंस देखकर बहुत खुश होता है और हंस लेने के लिए सिद्धार्थ के पास दौड़ कर आ धमकता है।

देवदत्त – ‘सिद्धार्थ यह हंस तुम्हारे पास है और मैं इसे कब से इधर-उधर ढूंढ रहा था । यह मेरा शिकार है, अब जाकर मिला है ।’

सिद्धार्थ– ‘नहीं देवदत्त । यह हंस मेरा है । यह तो कब का दम तोड़ देता अगर मैं समय पर इसका इलाज न करता। ‘ देवदत्त- ‘दम तोड़ देता तो क्या? यह तो मेरा शिकार है, मैंने इसे इसलिए तो मारा है । तुम जबरदस्ती मेरे शिकार को हड़पना चाहते हो ।’

इस तरह दोनों भाइयों में उस हंस के लिए वाद-विवाद होने लगा और धीरे -धीरे बात बढ़ गई । तब दोनों ने मिलकर फैसला किया कि यह हंस किसका है इस बात का निर्णय महाराज शुद्धोधन के पास जाकर ही होगा और दोनों भाई राज-दरबार में गए, वहां उन दोनों ने अपना-अपना तर्क महाराज के सामने रखा ।

महाराज शुद्धोधन विचार करके बोले – ‘चूंकि यह हंस देवदत्त का शिकार है इसलिए इसपर पहला अधिकार देखा जाए तो देवदत्त का है पंरतु सिद्धार्थ ने इसकी जान बचाई है और मारने वाले से बड़ा बचाने वाला होता है इसलिए यह हंस सिद्धार्थ का हुआ ।’

महाराज शुद्धोधन का निर्णय सुनकर सिद्धार्थ की आखों में एक चमक आ गई और वे उस हंस के शरीर पर धीरे से अपना हाथ रख सहलाने लगे।

गौतम बुद्ध की कहानियां (Stories of Lord Buddha)

भगवान बुद्ध की इस प्रेरक कहानि को मैंने बचपन में सुना था इसलिए आज इसे मैंने आप लोगो के साथ शेयर किया हैं | आशा करता हु की आपको यह कहानी पसंद आई होगी |

गौतम बुद्ध की कहानियां (buddh stories in hindi) की इस पोस्ट में महात्मा गौतम बुद्ध से सम्बन्धित 7 प्रेरक और शिक्षाप्रद कहानियां हैं, जिसका सार जिंदगी का बदल सकता हैं |

गौतम बुद्ध की कहानियां(gautam buddha stories in hindi) की इस पोस्ट में आपको अपने जीवन को किर्थार्थ करने वाली जानकारी मिली हो तो कमेंट सेक्शन में अपने विचार जरूर शेयर करना.

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