तेरी आँखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊं उन चिरागों ने मेरी नींद उड़ा रखी है
कभी आओ मेरे दर्द की ज़्यारत करने मुरीद हो जाओगे ये वादा है मेरा
मसरूफियत में आता है बेहद तुम्हारी याद फुर्सत में तेरी याद से फुरसत नहीं मिलती
तुम्हारे बाद भला ज़िन्दगी खा जीते तुम्हारे बाद तो साया भी हमसफ़र नहीं था