पढ़े मिर्जा ग़ालिब  की   कमाल की  शायरी 

कितने शिरीन हैं तेरे लब के रक़ीब गालियां खा के बेमज़ा न हुआ कुछ तो पढ़िए की लोग कहते हैं आज ग़ालिब गजलसारा न हुआ

इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या हाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने

सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले अदल के तुम न हमे आस दिलाओ क़त्ल हो जाते हैं ज़ंज़ीर हिलाने वाले

मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते ग़ालिब अर्श से इधर होता काश के माकन अपना

सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई मारा ज़माने ने ग़ालिब तुम को वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई