सिर्फ इशारों में होती महोब्बत अगर, इन अलफाजों को खुबसूरती कौन देता? बस पत्थर बन के रह जाता ‘ताज महल’ अगर इश्क इसे अपनी पहचान ना देता..
सितम सह कर भी कितने गम छिपाए हमने, तेरी खातिर हर दिन आँसू बहाए हमने, तू छोड़ गया जहाँ हमे राहों में अकेला, तेरे दिए जखम हर एक से छिपाए हमने।
हसना ही तन्ज़ है तो हसने का क्या तकल्लुफ, क्यूँ ज़हर दे रहे हो मोहब्बत मिला मिला कर